Monday, August 30, 2010

फ़साना

जी भरकर जमाना देख लिया


हर जाम में मैंने मैखाना देख लिया

शाख से टूटकर पत्ता गिरा है जब कोई

उसने अपना फ़साना देख लिया

सोची समझी साजिश थी ज़माने की शायद

कि हर अक्स मे वो मीत पुराना देख लिया

मिलते गए दोस्त कई राह मे

पर कुछ ही पल मे उनका बहाना देख लिया

मुददते हुई वही बैठा हुआ हूँ आज तक

न वो आये और न उनको आना था

पर एक हरे भरे पेड़

को सुखकर मुरझाना देख लिया

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