जी भरकर जमाना देख लिया
हर जाम में मैंने मैखाना देख लिया
शाख से टूटकर पत्ता गिरा है जब कोई
उसने अपना फ़साना देख लिया
सोची समझी साजिश थी ज़माने की शायद
कि हर अक्स मे वो मीत पुराना देख लिया
मिलते गए दोस्त कई राह मे
पर कुछ ही पल मे उनका बहाना देख लिया
मुददते हुई वही बैठा हुआ हूँ आज तक
न वो आये और न उनको आना था
पर एक हरे भरे पेड़
को सुखकर मुरझाना देख लिया
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