Monday, August 30, 2010

संगीत

संगीत सुना है मैंने


जब कोई हवा चली

पत्ता सरसरा उठा

और जब शाम ढली

संगीत सुना है मैंने

जब कोई तारा चमका

और चांदनी खिलखिलाई

बादलों के बीच से

एक बिजली हंसी

संगीत सुना है मैंने

जब शिवालय की घंटी बजी

और गंगा की लहरें उठी

मांझी की नाव चली और

कोई तितली उड़ चली

फ़साना

जी भरकर जमाना देख लिया


हर जाम में मैंने मैखाना देख लिया

शाख से टूटकर पत्ता गिरा है जब कोई

उसने अपना फ़साना देख लिया

सोची समझी साजिश थी ज़माने की शायद

कि हर अक्स मे वो मीत पुराना देख लिया

मिलते गए दोस्त कई राह मे

पर कुछ ही पल मे उनका बहाना देख लिया

मुददते हुई वही बैठा हुआ हूँ आज तक

न वो आये और न उनको आना था

पर एक हरे भरे पेड़

को सुखकर मुरझाना देख लिया

आखरी वक़्त

कुछ भी न साथ जाएगा


तू खाली हाथ ही जाएगा

पैसे के लिए दोस्तों को दुश्मन बनाने वाले

आखरी सफ़र मे बस दोस्त ही साथ जाएगा

तमाम उम्र जिनको अपना समझता रहा

वो केवल कुछ दूर ही साथ जाएगा

आगे का सफ़र अकेले ही तय करना है

ये कारवां तो वापस लौट आएगा

कुछ ही दिन सब रोयेंगे तेरे लिए

भूख प्यास भी होगी ख़तम

पर तेरा मीत ही बाद मै

थैला लटकाए सब्जे मंडी जाएगा

हर एक का अंत देखकर लगा

जैसे कुछ नहीं धरा है जीवन मे

मेरे साथ केवल पाप और पुण्य ही जायेंगा

पर सोचा भी नहीं था कि कभी

रास्ते पर पड़ा ५०० का नोट

मुझे अपनी और खीच ले जायेंगा

Sunday, August 29, 2010

जुदाई

याद कुछ यूँ आई आज तन्हाई मे


कि रो पड़ा हूँ मैं उनकी जुदाई मे

बुला दो कोई उनको

और हाल मेरा बता दो

कि साँसें गिन रहा हूँ मैं

उनकी बेवफाई में

कुछ पल के लिए ही भेज दे कोई

हाल मेरा देख ले वो अपनी आँखों से

अब तो मौत ही बेहतर है

इस बेमुरव्वत जग हसाईं में

यादें

बुझा दो ये चिराग


कि दम घुटता है मेरा

पत्तो की आहट से भी

सर झुकता है मेरा

अँधेरे मे उनकी यादो

को रोशन करूँगा

गर शमा जलेगी

तो अक्स टूटता है मेरा

शरमाकर भाग गए

वो आज इतनी दूर

कि ख़त लिखूं भी अगर

तो शब्द मिटता है मेरा

beete pal

सदिओं की उम्र पलो मे गुजर गई


जब घड़ी देखी तो पता चला

कब हो गए बाल सफ़ेद मेरे

जब आइना देखा तो पता चला

बदल गई दुकाने नए दौर में

पुरानी गलियन देखी तो पता चला

बुड्ढे माँ - बाप दरवाजा तकते रहे

बेटा बड़ा हुआ तब पता चला

आँसूं भी न निकल पाए

जब किसी लाश को देखकर

कितना खुध्गर्ज हुआ में

तब यह पता चला

सिर्फ तू

आज फिर दिल ने तुम्हे याद किया


कही कोई पत्ता खड़का

कही कोई आहट हुई तो

आज फिर दिल ने तुम्हे याद किया

कही ओस की बूंद

चिकनी नर्म पाती से बोली

अलविद चलती हूँ तो

आज फिर दिल ने तुम्हे याद किया

जब लाल सुर्ख गुलमोहर

गर्म बहती हवा में झूम उठा

और ठंडी हवा से बोला अलविदा तो

आज फिर दिल ने तुम्हे याद किया

तुम्हें पाकर भी खोने का एहसास हुआ

मेरे हर शब्द में तू आवाज हुआ

और जब मै मौन हुआ तो

आज फिर दिल ने तुम्हे याद किया

दर्द

कभी यूँ भी अफसाने बन गए


हम उनके दीवाने बन गए

आंसू तो था एक ही टपका

पर हजारो मैखाने बन गए

हँसतीहुई सूरत में हम

सैकड़ो गम छुपाए हुए

दर दर भटकते रहे

और दीवाने बन गए

उनसे हुजुर तब भी आया न गया

जब मेरी मौत की खबर पहुचीं

राह देखते उनकी जब जल गए हम

मिला न सुकून और अंगारे बन गए

Friday, August 27, 2010

वक़्त

फर्नीचर सा सजा हूँ घर मे



बस इक हंसी का तख्त नहीं


घडी  की तरह हूँ  चलता रहता


पर अपने लिए ही वक़्त नहीं

मंजरी