mere geet
Friday, August 27, 2010
वक़्त
फर्नीचर सा सजा हूँ घर मे
बस इक हंसी का तख्त नहीं
घडी की तरह हूँ चलता रहता
पर अपने लिए ही वक़्त नहीं
मंजरी
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