Sunday, September 26, 2010

teri aankhen

तेरी आँखों के समंदर
में डूब जाऊंगा
तू बुलाएगी  तो भी
 न बाहर आऊंगा
यह जन्नत सबसे
महफूज लगती  है
हर दर्द मै अब
यही छुपाऊंगा
कही बंद न कर लेना 
तू पलकें  अपनी
वरना अपनी परेशानी
कहाँ  ले जाऊंगा
जब भी दुनिया से 
भागता हूँ  तो यही
 छिपता हूँ  आकर
पर डर है यार कि
तू गर भगा देगा
तो कहाँ  जाऊँगा