कोई सागर याद आए तो मत रोना
बूंदे तो हैं प्यास बुझाने के लिए
सूरज के पीछे क्यों है भागता
दिया भी तो है टिमटिमाने के लिए
अंधी दौड़ मैं कहाँ दौड़ा जाता
घर भी तो है सुस्ताने के लिए
जब दुनिया दगा देगी ए दोस्त
माँ है ना लोरियां सुनाने के लिए
नमकीन आंसुओं को बहने दे
सरल रास्ता है दुःख भगाने के लिए
मंजिल उनको ही मिलती है
जो तैयार हैं ठोकरे खाने के लिए
चतुराई मत कर जीने के लिए
सच्चाई काफी है जीत जाने के लिए
मन गर साफ़ है तो हर
सूरत मैं खुदा बसता है
जरूरत नहीं हैं किसी
मस्जिद में जाने के लिए
mere geet
Sunday, October 17, 2010
तुम्हें सामने ही पाया
जब दिल ने पुकारा तुमको
तुम्हें सामने ही पाया
जब भी लिखा ख़त तुमको
तुम्हें सामने ही पाया
हर सुबह तुम्हें देखा
हर शाम तुम्हें चाहा
तू साथ है मेरे जैसे
जैसे मेरा कोई साया
आइना जब शरमाया
तुम्हें सामने ही पाया
जब भी लिखा ख़त तुमको
तुम्हें सामने ही पाया
सुबह की हलकी लाली में
शाखों की हर इक डाली में
इतराती हवा की सर-सर में
क्या अम्बर और क्या जल में
चाँद जब निकल आया
तुम्हें सामने ही पाया
जब भी लिखा ख़त तुमको
तुम्हें सामने ही पाया
जब दिल ने पुकारा तुमको
तुम्हें सामने ही पाया
जब भी लिखा ख़त तुमको
तुम्हें सामने ही पाया
तुम्हें सामने ही पाया
जब भी लिखा ख़त तुमको
तुम्हें सामने ही पाया
हर सुबह तुम्हें देखा
हर शाम तुम्हें चाहा
तू साथ है मेरे जैसे
जैसे मेरा कोई साया
आइना जब शरमाया
तुम्हें सामने ही पाया
जब भी लिखा ख़त तुमको
तुम्हें सामने ही पाया
सुबह की हलकी लाली में
शाखों की हर इक डाली में
इतराती हवा की सर-सर में
क्या अम्बर और क्या जल में
चाँद जब निकल आया
तुम्हें सामने ही पाया
जब भी लिखा ख़त तुमको
तुम्हें सामने ही पाया
जब दिल ने पुकारा तुमको
तुम्हें सामने ही पाया
जब भी लिखा ख़त तुमको
तुम्हें सामने ही पाया
जोकर
मैंने कल इक शादी में
मोटा सा एक जोकर देखा
हँसते चेहरे पर उसके
ढेर पावडर पोते देखा
उसे देख दौड़ते बच्चे
हँसते और मचलते बच्चे
प्यार से उसके पास जाते
हाथ मिला खुश हो जाते
जहाँ कही भी वो जाता
हर चेहरा खिल जाता
मोटा पेट जब उसका हिलता
बूढों का भी दिल खिलता
फिर एक कोने में दिखा वो
बहते आंसू हुआ पोंछता
दूर कही इस भीड़ से
तन्हाई में कुछ सोचता
कहता जाता था खुद से
भूखा हूँ मैं दिनभर से
नकली हंसी रहा हँसता
दुःख मेरा है सबसे सस्ता
सबके हाथ में थाली है
पर मेरा पेट खाली है
बच्चे राह तकते होंगे
हर आहट पे जगते होंगे
भूखे पेट सोएंगे कैसे
सूखे आंसूं रोयेंगे कैसे
हँसता हूँ मैं सबके आगे
रातों को में रोता हूँ
दिन रात हूँ मेहनत करता
ख्वाबों में ही सोता हूँ
अमीरों के बच्चों को मैं
गुदगुदाकर हँसाता हूँ
अपने ही बच्चों को रोज
खाली पेट सुलाता हूँ
----
मोटा सा एक जोकर देखा
हँसते चेहरे पर उसके
ढेर पावडर पोते देखा
उसे देख दौड़ते बच्चे
हँसते और मचलते बच्चे
प्यार से उसके पास जाते
हाथ मिला खुश हो जाते
जहाँ कही भी वो जाता
हर चेहरा खिल जाता
मोटा पेट जब उसका हिलता
बूढों का भी दिल खिलता
फिर एक कोने में दिखा वो
बहते आंसू हुआ पोंछता
दूर कही इस भीड़ से
तन्हाई में कुछ सोचता
कहता जाता था खुद से
भूखा हूँ मैं दिनभर से
नकली हंसी रहा हँसता
दुःख मेरा है सबसे सस्ता
सबके हाथ में थाली है
पर मेरा पेट खाली है
बच्चे राह तकते होंगे
हर आहट पे जगते होंगे
भूखे पेट सोएंगे कैसे
सूखे आंसूं रोयेंगे कैसे
हँसता हूँ मैं सबके आगे
रातों को में रोता हूँ
दिन रात हूँ मेहनत करता
ख्वाबों में ही सोता हूँ
अमीरों के बच्चों को मैं
गुदगुदाकर हँसाता हूँ
अपने ही बच्चों को रोज
खाली पेट सुलाता हूँ
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Sunday, September 26, 2010
teri aankhen
तेरी आँखों के समंदर
में डूब जाऊंगा
तू बुलाएगी तो भी
न बाहर आऊंगा
यह जन्नत सबसे
महफूज लगती है
हर दर्द मै अब
यही छुपाऊंगा
कही बंद न कर लेना
तू पलकें अपनी
वरना अपनी परेशानी
कहाँ ले जाऊंगा
जब भी दुनिया से
भागता हूँ तो यही
छिपता हूँ आकर
पर डर है यार कि
तू गर भगा देगा
तो कहाँ जाऊँगा
Monday, August 30, 2010
संगीत
संगीत सुना है मैंने
जब कोई हवा चली
पत्ता सरसरा उठा
और जब शाम ढली
संगीत सुना है मैंने
जब कोई तारा चमका
और चांदनी खिलखिलाई
बादलों के बीच से
एक बिजली हंसी
संगीत सुना है मैंने
जब शिवालय की घंटी बजी
और गंगा की लहरें उठी
मांझी की नाव चली और
कोई तितली उड़ चली
जब कोई हवा चली
पत्ता सरसरा उठा
और जब शाम ढली
संगीत सुना है मैंने
जब कोई तारा चमका
और चांदनी खिलखिलाई
बादलों के बीच से
एक बिजली हंसी
संगीत सुना है मैंने
जब शिवालय की घंटी बजी
और गंगा की लहरें उठी
मांझी की नाव चली और
कोई तितली उड़ चली
फ़साना
जी भरकर जमाना देख लिया
हर जाम में मैंने मैखाना देख लिया
शाख से टूटकर पत्ता गिरा है जब कोई
उसने अपना फ़साना देख लिया
सोची समझी साजिश थी ज़माने की शायद
कि हर अक्स मे वो मीत पुराना देख लिया
मिलते गए दोस्त कई राह मे
पर कुछ ही पल मे उनका बहाना देख लिया
मुददते हुई वही बैठा हुआ हूँ आज तक
न वो आये और न उनको आना था
पर एक हरे भरे पेड़
को सुखकर मुरझाना देख लिया
हर जाम में मैंने मैखाना देख लिया
शाख से टूटकर पत्ता गिरा है जब कोई
उसने अपना फ़साना देख लिया
सोची समझी साजिश थी ज़माने की शायद
कि हर अक्स मे वो मीत पुराना देख लिया
मिलते गए दोस्त कई राह मे
पर कुछ ही पल मे उनका बहाना देख लिया
मुददते हुई वही बैठा हुआ हूँ आज तक
न वो आये और न उनको आना था
पर एक हरे भरे पेड़
को सुखकर मुरझाना देख लिया
आखरी वक़्त
कुछ भी न साथ जाएगा
तू खाली हाथ ही जाएगा
पैसे के लिए दोस्तों को दुश्मन बनाने वाले
आखरी सफ़र मे बस दोस्त ही साथ जाएगा
तमाम उम्र जिनको अपना समझता रहा
वो केवल कुछ दूर ही साथ जाएगा
आगे का सफ़र अकेले ही तय करना है
ये कारवां तो वापस लौट आएगा
कुछ ही दिन सब रोयेंगे तेरे लिए
भूख प्यास भी होगी ख़तम
पर तेरा मीत ही बाद मै
थैला लटकाए सब्जे मंडी जाएगा
हर एक का अंत देखकर लगा
जैसे कुछ नहीं धरा है जीवन मे
मेरे साथ केवल पाप और पुण्य ही जायेंगा
पर सोचा भी नहीं था कि कभी
रास्ते पर पड़ा ५०० का नोट
मुझे अपनी और खीच ले जायेंगा
तू खाली हाथ ही जाएगा
पैसे के लिए दोस्तों को दुश्मन बनाने वाले
आखरी सफ़र मे बस दोस्त ही साथ जाएगा
तमाम उम्र जिनको अपना समझता रहा
वो केवल कुछ दूर ही साथ जाएगा
आगे का सफ़र अकेले ही तय करना है
ये कारवां तो वापस लौट आएगा
कुछ ही दिन सब रोयेंगे तेरे लिए
भूख प्यास भी होगी ख़तम
पर तेरा मीत ही बाद मै
थैला लटकाए सब्जे मंडी जाएगा
हर एक का अंत देखकर लगा
जैसे कुछ नहीं धरा है जीवन मे
मेरे साथ केवल पाप और पुण्य ही जायेंगा
पर सोचा भी नहीं था कि कभी
रास्ते पर पड़ा ५०० का नोट
मुझे अपनी और खीच ले जायेंगा
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