Sunday, October 17, 2010

तुम्हें सामने ही पाया

जब दिल ने पुकारा तुमको
तुम्हें सामने ही पाया
जब भी लिखा ख़त तुमको
तुम्हें सामने ही पाया
 
हर सुबह तुम्हें देखा
हर शाम तुम्हें चाहा
तू साथ है मेरे जैसे
जैसे मेरा कोई साया
आइना जब शरमाया
तुम्हें सामने ही पाया
जब भी लिखा ख़त तुमको
तुम्हें सामने ही पाया
 
सुबह की हलकी लाली में
शाखों की हर इक डाली में
इतराती हवा की सर-सर में
क्या अम्बर और क्या जल में
चाँद जब निकल आया
तुम्हें सामने ही पाया
 
जब भी लिखा ख़त तुमको
तुम्हें सामने ही पाया
जब दिल ने पुकारा तुमको
तुम्हें सामने ही पाया
जब भी लिखा ख़त तुमको
तुम्हें सामने ही पाया

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