Sunday, October 17, 2010

जोकर

मैंने कल इक शादी में
मोटा सा एक जोकर देखा
हँसते चेहरे पर उसके
ढेर पावडर पोते देखा
उसे देख दौड़ते बच्चे
हँसते और मचलते बच्चे
प्यार से उसके पास जाते
हाथ मिला खुश हो जाते
जहाँ कही भी वो जाता
हर चेहरा खिल जाता
मोटा पेट जब उसका हिलता
बूढों का भी दिल खिलता
फिर एक कोने में दिखा वो
बहते आंसू हुआ पोंछता
दूर कही इस भीड़ से
तन्हाई में कुछ सोचता
कहता जाता था खुद से
भूखा हूँ मैं दिनभर से
नकली हंसी रहा हँसता
दुःख मेरा है सबसे सस्ता
सबके हाथ में थाली है
पर मेरा पेट खाली है
बच्चे राह तकते होंगे
हर आहट पे जगते होंगे
भूखे पेट सोएंगे कैसे
सूखे आंसूं रोयेंगे कैसे
हँसता हूँ मैं सबके आगे
रातों को में रोता हूँ
दिन रात हूँ मेहनत करता
ख्वाबों में ही सोता हूँ
अमीरों के बच्चों को मैं
गुदगुदाकर हँसाता हूँ
अपने ही बच्चों को रोज
खाली पेट सुलाता हूँ
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