Sunday, October 17, 2010

कोई सागर याद आए तो मत रोना

कोई सागर याद आए तो मत रोना
बूंदे तो हैं प्यास बुझाने के लिए
सूरज के पीछे क्यों है भागता
दिया भी तो है टिमटिमाने के लिए
 
अंधी दौड़ मैं कहाँ दौड़ा जाता
घर भी तो है सुस्ताने के लिए
जब दुनिया दगा देगी ए दोस्त
माँ है ना लोरियां सुनाने के लिए
 
नमकीन आंसुओं को बहने दे
सरल रास्ता है दुःख भगाने के लिए
मंजिल उनको ही मिलती है
जो तैयार हैं ठोकरे खाने के लिए
 
चतुराई मत कर जीने के लिए
सच्चाई काफी है जीत जाने के लिए
मन गर साफ़ है तो हर
सूरत मैं खुदा बसता है
जरूरत नहीं हैं किसी
मस्जिद में जाने के लिए

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